पापा का सपना पूरा करने की जिद में बीकानेर की बेटी ने जीत लिए सात 'गोल्ड मेडल'
अपने पापा की मौत के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने जिद में एक बेटी ने सात स्वर्ण पदक जीत लिए. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी आश्चर्यचकित हो गए जब 22 स्वर्ण पदकों में से 7 स्वर्ण पदक एक ही बेटी ने जीत लिए. राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में अपने पापा के सपने को पूरा करने वाली दो बेटियों पर हर किसी की निगाह टिकी थी. दोनों के गले में लटक रहे स्वर्ण पदक 'बेटियां पापा की परी होती है' की कहावत को चरितार्थ कर रहे थे.
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में रविवार को 22 स्वर्ण पदक वितरित किए गए. इसमें से 19 स्वर्ण पदकों पर बेटियों ने कब्जा जमाया है. लेकिन दो बेटियों की कहानी यहां हर किसी के लिए खास थी. इन दोनों बेटियों ने अपने पापा की मौत के बाद उनके सपने को पूरा करने ऐसा प्रण लिया कि हर कोई यह करने को मजबूर हो गया कि वाकई में बेटियां बेटों से कम नहीं होती है.
सिविल सर्विसेज में जाना चाहती है
मूलत: बीकानेर जिले की रहने वाली सोनाली खत्री हालांकि सिविल सर्विसेज में जाना चाहती है, लेकिन अपने पापा की इच्छा को पूरा करने के लिए उसने एनएलयू में प्रवेश लिया. वह अपने पापा के सपने को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत करती रही. इसका नतीजा यह निकला कि उसने इस वर्ष दिए गए 22 स्वर्ण पदकों में से 7 पर कब्जा जमा लिया. हालांकि वह अपनी उपलब्धि से बहुत खुश है, लेकिन अपने पापा को याद करके वह अपने आंखों के आंसुओं को नहीं रोक पाई.
सोनाली ने बताया कि उसने आजादी लिए लड़ने वाले फ्रीडम फाइटर से हमेशा प्रेरणा ली है. इस देश की आजादी की जंग लड़ने वाले अधिकांश लोग अधिवक्ता थे. वह भी देश के लिए कुछ करना चाहती है. वह अधिवक्ता के पेशे को पवित्र पेशा मानती है. अब वह एक आईपीएस अधिकारी बनना चाहती है.
आयुषी ने पिता सपने में अपना जीवन ढूंढा
जोधपुर की आयुषी के पिता भी अपनी लाडली को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन छोटी सी उम्र में वे इस सपने को अपने सीने में दबाए इस दुनिया को छोड़कर चले गए. आयुषी ने अपने पिता के इस सपने में अपना जीवन ढूंढ लिया. साथ ही आयुषी जोशी को यह समझ आ गया कि जीवन में बीमा का कितना महत्व है. किसी इंसान की मौत के बाद उसके परिवार के लिए बीमा एक सबसे बड़ा सहारा होता है. बस इसी बात को जीवन में उतार लिया और कानून की पढ़ाई में आयुषी ने बीमा क्षेत्र में महारत हासिल कर ली. आज आयुषी की मां डॉ. प्रेमलता बहुत खुश है. आयुषी के परिवार में लगभग 25 डॉक्टर हैं, लेकिन आयुषी ने अपने जीवन की राह चुनी कानून के क्षेत्र में.
गोल्ड मेडल नहीं पिता के सपनों को जीता है
सोनाली और आयुषी ने आज गोल्ड मेडल नहीं जीते हैं, बल्कि अपनी मेहनत के बल पर अपने स्वर्गवासी पिता के उन सपनों को जीता है, जिनको कभी उनके पिता ने अपनी नन्हीं सी परी को अपने सीने पर सुलाकर देखा था. आज दोनों बेटियों ने यह साबित कर दिया कि बेटियां बेटों से कम नही होती हैं. वे भी बड़ी शिद्दत से अपने पिता के सपनों को सच कर दिखाने का माद्दा रखती है.
दीक्षांत समारोह में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश केएम जोसेफ और विश्वविद्यालय के चांसलर एवं राजस्थान हाईकोर्ट के सीजे प्रदीप नन्द्राजोग ने डिग्रियां, उपाधियां और मेडल प्रदान किए.
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में रविवार को 22 स्वर्ण पदक वितरित किए गए. इसमें से 19 स्वर्ण पदकों पर बेटियों ने कब्जा जमाया है. लेकिन दो बेटियों की कहानी यहां हर किसी के लिए खास थी. इन दोनों बेटियों ने अपने पापा की मौत के बाद उनके सपने को पूरा करने ऐसा प्रण लिया कि हर कोई यह करने को मजबूर हो गया कि वाकई में बेटियां बेटों से कम नहीं होती है.
सिविल सर्विसेज में जाना चाहती है
मूलत: बीकानेर जिले की रहने वाली सोनाली खत्री हालांकि सिविल सर्विसेज में जाना चाहती है, लेकिन अपने पापा की इच्छा को पूरा करने के लिए उसने एनएलयू में प्रवेश लिया. वह अपने पापा के सपने को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत करती रही. इसका नतीजा यह निकला कि उसने इस वर्ष दिए गए 22 स्वर्ण पदकों में से 7 पर कब्जा जमा लिया. हालांकि वह अपनी उपलब्धि से बहुत खुश है, लेकिन अपने पापा को याद करके वह अपने आंखों के आंसुओं को नहीं रोक पाई.
सोनाली ने बताया कि उसने आजादी लिए लड़ने वाले फ्रीडम फाइटर से हमेशा प्रेरणा ली है. इस देश की आजादी की जंग लड़ने वाले अधिकांश लोग अधिवक्ता थे. वह भी देश के लिए कुछ करना चाहती है. वह अधिवक्ता के पेशे को पवित्र पेशा मानती है. अब वह एक आईपीएस अधिकारी बनना चाहती है.
आयुषी ने पिता सपने में अपना जीवन ढूंढा
जोधपुर की आयुषी के पिता भी अपनी लाडली को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन छोटी सी उम्र में वे इस सपने को अपने सीने में दबाए इस दुनिया को छोड़कर चले गए. आयुषी ने अपने पिता के इस सपने में अपना जीवन ढूंढ लिया. साथ ही आयुषी जोशी को यह समझ आ गया कि जीवन में बीमा का कितना महत्व है. किसी इंसान की मौत के बाद उसके परिवार के लिए बीमा एक सबसे बड़ा सहारा होता है. बस इसी बात को जीवन में उतार लिया और कानून की पढ़ाई में आयुषी ने बीमा क्षेत्र में महारत हासिल कर ली. आज आयुषी की मां डॉ. प्रेमलता बहुत खुश है. आयुषी के परिवार में लगभग 25 डॉक्टर हैं, लेकिन आयुषी ने अपने जीवन की राह चुनी कानून के क्षेत्र में.
गोल्ड मेडल नहीं पिता के सपनों को जीता है
सोनाली और आयुषी ने आज गोल्ड मेडल नहीं जीते हैं, बल्कि अपनी मेहनत के बल पर अपने स्वर्गवासी पिता के उन सपनों को जीता है, जिनको कभी उनके पिता ने अपनी नन्हीं सी परी को अपने सीने पर सुलाकर देखा था. आज दोनों बेटियों ने यह साबित कर दिया कि बेटियां बेटों से कम नही होती हैं. वे भी बड़ी शिद्दत से अपने पिता के सपनों को सच कर दिखाने का माद्दा रखती है.
दीक्षांत समारोह में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश केएम जोसेफ और विश्वविद्यालय के चांसलर एवं राजस्थान हाईकोर्ट के सीजे प्रदीप नन्द्राजोग ने डिग्रियां, उपाधियां और मेडल प्रदान किए.
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