5 जातियों में सिमटी जिले की 4 विधानसभा सीटें बाकी न प्रभुत्व दिखा पाए, न पार्टियों ने मौका दिया

जालोर जिले की पांच सीटों में से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित एक सीट जालोर को छोड़ दिया जाए तो शेष चारों सीट पांच जातियों में ही सिमटी हुई है। यहां लंबे समय तक विधानसभा चुनावों में तो तीन जातियों का ही प्रभुत्व रहा। पिछले बीस वर्षों से दो जाति और शामिल हो गई है। इनके अलावा यहां चार सीटों पर न तो कोई प्रमुख पार्टी अन्य जाति के व्यक्ति को चुनाव मैदान में उतारने की हिम्मत कर पाती है और न ही निर्दलीय के रूप में अन्य जाति के नेता जनाधार के बल पर जीत पा रहे हैं। राजनैतिक पार्टियां भले ही चुनाव से पहले जातिवाद को दूर रखने के दावे करती हो, लेकिन चुनाव में इससे पार्टियां भी नहीं बच पाती है। जाति बाहुल्य को ध्यान में रखते हुए ही टिकट वितरण किया जाता है। इस बार भी इन चार सीटों पर पांच जातियों के उम्मीदवारों को ही दोनों पार्टियों ने उतारा है। 

जाति आधारित राजनीति यहां रहती है हावी : इन क्षेत्रों में जाति आधारित राजनीति हमेशा से ही हावी रही है। राजनीतिक दल भी इसमें संबंधित विधानसभा चुनाव में बाहुल्य जाति के उम्मीदवार पर ही अधिक विचार करती है। इस कारण अन्य जातियों का प्रतिनिधित्व नगण्य रहता है। विशेषकर शिक्षा व राजनीतिक जागरूकता की कमी के कारण अन्य जातियों रूचि भी बाहुलता के आगे कम पड़ जाती है। 

2018 जातिवाद के आगे मजबूर राजनीतिक पार्टियां, पांच में से जालोर विधानसभा सीट पचास साल से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 2003 तक तो चारों सीटों पर केवल 3 जातियों का रहा प्रभुत्व 

आजादी के बाद से हुए चुनावों पर नजर डाली जाए तो जालोर सीट को छोड़कर शेष चारों सीटों पर केवल तीन जातियां राजपूत, चौधरी (कलबी) व विश्नोई का ही प्रभुत्व रहा है। इन चारों सीटों पर राजनीतिक पार्टियों की ओर से इन्हीं जाति समाज के नेताओं को टिकट दिए जाते थे और इनमें से ही विधायक निर्वाचित होते थे। वर्ष 2003 के में राजपुरोहित व 2008 में देवासी समाज का भी प्रवेश हो गया। इसके बाद से जिले में इन चारों सीटों से विधानसभा चुनावों के लिए इन पांचों जातियों के इर्द -गिर्द ही राजनीति घूम रही है। 

इन विधानसभा क्षेत्रों पर अब तक इनका रहा प्रभुत्व आहोर में 2003 तक राजपूत-चौधरी समाज का प्रतिनिधित्व आहोर विधानसभा सीट पर अब तक 13 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। वर्ष 2003 तक यहां राजपूत व चौधरी समाज से ही विधायक बने। 2003 में पहली बार राजपुरोहित जाति से एक विधायक चुना गया। 



भीनमाल में 12 में से 11 बार राजपूत-चौधरी ही बने विधायक भीनमाल विधानसभा सीट पर अब तक 12 बार चुनाव हो चुके हैं। यहां 11 बार राजपूत व चौधरी विधायक रहे। केवल एक बार 1972 में विश्नोई जाति का विधायक रहा है। 



रानीवाड़ा में 2008 को छोड़कर चौधरी-राजपूत ही रहे विधायक रानीवाड़ा विधानसभा सीट पर 13 बार चुनाव हो चुके हैं। यहां विधायक के रूप में राजपूत व चौधरी ही रहे हैं। केवल 2008 में पहली बार देवासी समाज से विधायक चुना गया। 



सांचौर में पच्चीस साल से बिश्नोई-चौधरी बनते आ रहे हैं विधायक 25 वर्षों से बिश्नोई-चौधरी जाति से विधायक बने। 1993 से पहले तीन बार जैन, एक बार मुस्लिम व एक बार राजपूत विधायक रह चुका है। 




जालोर जिले में 6 अभ्यर्थियों ने लिए नामांकन वापस 

जालोर| 
जिले में विधानसभा आम चुनावों में नामांकन वापसी के तहत बुधवार को 6 अभ्यर्थियों ने नामांकन पत्र सम्बन्धित रिटर्निंग अधिकारियों के समक्ष उपस्थित होकर वापिस लिए। जिला निर्वाचन अधिकारी (कलेक्टर) बी.एल.कोठारी ने बताया कि विधानसभा आम चुनाव-2018 के तहत नामांकन वापसी के तहत बुधवार को जिले में 6 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन वापिस लिए। उन्होंने बताया कि भीनमाल विधानसभा क्षेत्र में राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार छतराराम एवं निर्दलीय उम्मीदवार हाथीराम व खेमा (खीमराज) ने अपने नामांकन वापिस लिए। इसी प्रकार रानीवाड़ा विधानसभा में निर्दलीय मोहन तथा सांचौर विधानसभा में निर्दलीय उम्मीदवार जीवाराम पुत्र रेखाराम व शंकरलाल ने अपने नामांकन पत्र वापिस लिए। वही बुधवार को आहोर व जालोर विधानसभा में किसी अभ्यर्थी ने अपना नामांकन पत्र वापिस नहीं लिया। 

अब पांचों विधानसभा में 62 में से 56 प्रत्याशी मैदान में

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